Book Your Slot
Submit Poetry
जौन एलिया (Jaun Elia), जिनका असली नाम सैयद हुसैन सिब्ते असगर नकवी था, उर्दू के एक ऐसे शायर थे जिनकी शायरी में विद्रोह, अकेलापन और अस्तित्व का गहरा बोध झलकता है। 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में जन्मे जौन एलिया ने अपनी पूरी ज़िंदगी शायरी और फ़लसफ़े के नाम कर दी।
जौन एलिया का परिवार साहित्य से गहरा जुड़ा हुआ था। उनके पिता शफीक हसन एलिया, एक विद्वान थे और उनके बड़े भाई रईस अमरोहवी भी एक मशहूर शायर थे। जौन एलिया बचपन से ही बहुत तेज दिमाग के थे और उन्होंने अरबी, फ़ारसी, उर्दू और अंग्रेज़ी के साथ-साथ दर्शनशास्त्र (Philosophy) और तर्कशास्त्र (Logic) की भी गहरी पढ़ाई की। हालाँकि, भारत के विभाजन ने उनके जीवन पर गहरा असर डाला। वो शुरुआत में विभाजन के सख़्त ख़िलाफ़ थे, लेकिन 1957 में उन्हें पाकिस्तान जाना पड़ा। इस घटना ने उनके अंदर एक स्थायी उदासी और अलगाव का एहसास भर दिया, जो बाद में उनकी शायरी का मुख्य विषय बन गया।
जौन एलिया को "परंपरा को तोड़ने वाला शायर" कहा जाता है। उनकी शायरी में पारंपरिक प्रेम की बजाय आधुनिकता का संकट, अकेलेपन का दर्द और इंसान के अस्तित्व से जुड़े सवाल ज़्यादा मिलते हैं। उनके शे'रों में एक बागीपन और तल्ख़ अंदाज़ है जो उन्हें उनके समकालीन शायरों से अलग करता है।
जौन एलिया की शायरी के प्रमुख विषय:
अकेलापन और उदासी: उनके कई शे'रों में दिल टूटने और अकेलेपन का दर्द साफ़ झलकता है। वो अक्सर अपनी शायरी में एक काल्पनिक महबूबा 'सोफिया' का ज़िक्र करते हैं, जो उनके अंदर की तन्हाई को दिखाता है।
अस्तित्ववाद (Existentialism): वो अपनी शायरी में जीवन के उद्देश्य, इंसान की पहचान और दुनिया के बेतुकेपन जैसे दार्शनिक विषयों पर बात करते हैं। उनका नज़रिया अक्सर निराशावादी और विद्रोही होता था।
राजनीतिक विद्रोह: जिया-उल-हक की तानाशाही के दौर में उन्होंने पूंजीवाद और धार्मिक पाखंड के ख़िलाफ़ भी लिखा। इसी कारण, कवि कुमार विश्वास ने उन्हें "शायरी का चे ग्वेरा" कहा था, क्योंकि दोनों ही अपने बाग़ी अंदाज़ और व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ने की सोच के लिए जाने जाते हैं।
जौन एलिया की ज़्यादातर किताबें उनकी मौत के बाद ही प्रकाशित हुईं, यही वजह है कि उन्हें असल लोकप्रियता उनकी मौत के बाद ही मिली। उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं:
शायद (Shayad): यह उनका पहला संग्रह है जो 1991 में प्रकाशित हुआ। इसमें अकेलेपन, नाकाम मोहब्बत और दुनिया की बेमायनी पर लिखी गई ग़ज़लें शामिल हैं।
या'नी (Ya'ni): इस संग्रह में भी उनकी दार्शनिक और बागी शायरी की झलक मिलती है।
गुमान (Guman): यह संग्रह उनकी निराशावादी सोच को दिखाता है।
इनके अलावा, उनके प्रमुख संग्रहों में लेकिन (Lekin) और गोया (Goya) भी शामिल हैं।
जौन एलिया का निजी जीवन काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने मशहूर लेखिका ज़ाहिदा हिना से शादी की, जिनसे बाद में उनका तलाक़ हो गया। तलाक़ के बाद वो बहुत दुखी और तन्हा रहने लगे, जिसका असर उनकी शायरी पर भी पड़ा। 8 नवंबर 2002 को लंबी बीमारी के बाद कराची, पाकिस्तान में उनका निधन हो गया।
जौन एलिया को उनकी ज़िंदगी में वह पहचान नहीं मिल पाई जिसके वह हक़दार थे। लेकिन उनकी मौत के बाद उनकी शायरी तेज़ी से लोकप्रिय हुई, ख़ासकर नौजवानों में। उनकी शायरी सोशल मीडिया पर वायरल हुई, क्योंकि युवा उनकी बेबाक और बागी सोच से जुड़ाव महसूस करते थे। जौन एलिया आज भी उर्दू शायरी के सबसे प्रभावशाली और अनोखे शायरों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने अपनी शायरी को एक नई दिशा दी।
Ttttt
wow