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मिलान कुंडेरा नॉवेल की तारीख़ का एक जीनियस नाॅवेल निगार है! उसका शुमार काफ़्का के बाद पैदा होने वाले चेक ज़बान के अहम फ़िक्शन लिखने वालों में किया जाता है। बल्कि यूरोपियन नॉवेल को जो मक़ाम और मर्तबा कुंडेरा ने अता किया, वो उसका अज़ीम कारनामा है।
1975 में चेकोस्लोवाकिया छोड़ने के बाद उसने फ़्रांस में पनाह ली, और 1979 में उसकी चेकोस्लोवाकियन शहरियत भी ख़त्म कर दी गई। 1981 में उसने फ़्रांसीसी शहरियत हासिल कर ली और ता-हयात वो फ़्रांस ही में मुक़ीम रहा हालांकि उसने बाक़ी नॉवेल फ़्रेंच ही में लिखे, जिन्हें चेक ज़बान में भी छापा गया। 1967 में उसका पहला और अहम नॉवेल “मज़ाक़” मंज़र-ए-आम पर आया, और 1984 में उसके अहम तरीन और शाहकार नॉवेल “वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त” का फ़्रेंच और अंग्रेज़ी तर्जुमा शाए किया गया, जिसने एक नाॅवेल निगार के तौर पर उसकी शोहरत और अज़मत को रातों-रात उरूज पर पहुँचा दिया। नाॅवेल अगले ही साल चेक ज़बान में भी शाए किया गया। कुंडेरा के अदब में नाॅवेलों के अलावा एक बहुत अहम किताब “नाविल का फ़न” शामिल है जो 1986 में शाए की गई थी।
“वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त” कुंडेरा का बेहतरीन, अहम और कई नाविलियाती/ नाविलाती बहसों को पैदा करने वाला नॉवेल माना जाता है। उसके मुताबिक़ इस नॉवेल को जिन बुनियादों या जिन सुतूनों पर लिखा गया है उनमें बोझ, लताफ़त, रूह, जिस्म, ग्रैंड मार्च, किच या किश, गिर जाने की कैफ़ियत, क़ुव्वत और कमज़ोरी शामिल हैं। नॉवेल को पढ़ते हुए हम कई सतहों पर उसके फैलाव को देखते हैं और ये फैलाव वुजूद, जिंस, मोहब्बत, सियासत (प्रेग स्प्रिंग), फ़लसफ़ा, मौसीक़ी, किरदारों की सूरत-ए-हाल पर है और बक़ौल कुंडेरा “बेवफ़ाई, सरहद, मुक़द्दर, लताफ़त, ग़नाइयत; मुझे यूँ लगता है कि एक नॉवेल अक्सर कुछ गुरेज़ाँ इस्तिलाहों को पाने की तवील जुस्तजू के सिवा कुछ नहीं।”
अपनी किताब “नाविल के फ़न” में एक मक़ाम पर कुंडेरा रकम-तराज़ है: “वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त ना-तजरिबाकारी का सय्यारा था। ना-तजरिबाकारी: इंसानी सूरत-ए-हाल की ख़ुसीसियत की सूरत।” और मज़्कूरा नॉवेल में ज़मीन को कुंडेरा ने सय्यारा नंबर एक यानी ना-तजरिबाकारी का सय्यारा ही कहा है।
नॉवेल में ग़लत-फ़हमी, ना-इंसाफ़ी, माज़ी और हिजरत जैसे मौज़ूआत पर भी गुफ़्तगू की गई है, जो बहुत अहम और पढ़ने से तअल्लुक़ रखती है।
कुंडेरा के मुताबिक़ किसी को भी (जो उसके नॉवेलों या बिल-ख़ुसूस “वुजूद की ना-क़ाबिल-ए-बर्दाश्त लताफ़त” को पढ़ता है) वुजूद की इब्तिदा और इन्तिहा पर हैरान होने की कोई ज़रूरत नहीं, क्योंकि ये तो किसी भी तरह नापे नहीं जा सकते, बल्कि इंसान को उस फ़ितरत पर हैरान होना चाहिए जो यक़ीन से बाहर की शय है और जिसकी कोई शिनाख़्त है। आगे वो ये भी कहता है कि उसके नाॅवेलों में वुजूद को समझने का तरीक़ा ये है कि वुजूद से पैदा होने वाले मसाइल को समझने की कोशिश की जाए। दरअस्ल पूरा नॉवेल ऐसे अल्फ़ाज़ से भरा पड़ा है जो किरदारों के एक-दूसरे के वुजूदी मसाइल के इंसिलाकात पर मुश्तमिल हैं। इन अल्फ़ाज़ में बदन, रूह, नक़ाहत, सर घूमने की कैफ़ियत (virtigo), लोकगीत, बहिश्त, लताफ़त, वज़्न, ग़लत समझे गए अल्फ़ाज़, औरत, वफ़ादारी, बेवफ़ाई, मौसीक़ी, अंधेरा, रौशनी, क़तारें, हुस्न, मुल्क, क़ब्रिस्तान, क़ुव्वत। ये लफ़्ज़ अस्लन अल्फ़ाज़ न होकर अक्सर मक़ामात पर एक सूरत-ए-हाल पेश करते नज़र आते हैं। इसे आप ऐसे समझने की कोशिश कीजिए कि ये तमाम अल्फ़ाज़ वुजूदी इशारे हैं, जो अपने मरकज़ यानी सूरत-ए-हाल की तरफ़ हर किरदार को खींचते हैं, और कुंडेरा के वज़’करदा लफ़्ज़ ‘इन्हिराफ़’ के ज़रिए परवरिश पाते हैं। ‘इन्हिराफ़’ अस्ल में वो जस्त है जो मुसन्निफ़ (नॉवेल में मौजूद) कहानी बयान करने के लिए लगाता है। ये एक लहज़ा है, यानी एक तवक़्क़ुफ़, एक लम्हा!
नॉवेल के नुमाइंदा किरदारों में शामिल टॉमस की सूरत-ए-हाल कुछ इस तरह की है कि वो अपने घर में खड़ा “अहाते के पास मुख़ालिफ़ सिम्त में दीवारों से जवाब माँग रहा था और टेरेज़ा उसे अपने सोफ़े पर लेटी याद आ रही थी। उसकी साबिक़ा ज़िंदगी में उस जैसी और कोई नहीं थी। वो न दाश्ता थी और न औरत। वो तो एक बच्ची थी जिसे एक नरसल की टोकरी में लिटा कर, कीचड़ से लेप कर उसके बिस्तर के किनारे तक बहा दिया गया था।” इस सूरत-ए-हाल के साथ मुश्किल ये है कि टॉमस को ये नहीं समझ में आता कि मोहब्बत है या कोई हिस्टीरियाई अमल। मोहब्बत वो शय थी जिस पर कुंडेरा ने मुकम्मल नॉवेल में जिंस के बाद सबसे अच्छी तरह लिखा है, कमाल की बात तो ये है कि उसने मोहब्बत को दर्दमंदी और मुजामअत के सराब से निकाल कर एक हक़ीक़ी और ज़िंदगी-अफ़ज़ा आब-ए-रवाँ की सूरत में पेश किया है। “किसी से दर्दमंदी की वज्ह से मोहब्बत करने का मतलब है कि वाक़ई मोहब्बत नहीं है।” या एक दूसरे मक़ाम पर “दर्दमंदी से ज़ियादा वज़्नी बोझ कुछ नहीं।” जैसे जुमले जिन्हें बहुत आला क़िस्म की फ़नकारी से तराशा गया है, मोहब्बत के हवाले से कुंडेरा की कुशादा ज़ेहनी की अहम मिसाल है। अपनी अहम किताब “नाविल के फ़न” में उसने मोहब्बत के बारे में ख़ूबसूरत बात कही है कि सिवाए “मज़हक़ा-ख़ेज़ मोहब्बतें” के, मोहब्बत का ख़याल हमेशा संजीदगी के साथ वाबस्ता रहा है। और इस नॉवेल में उसने मोहब्बत के हवाले से जिस फ़साहत-ओ-बलाग़त का इज़हार किया है वो महज़ क़ाबिल-ए-तारीफ़ नहीं बल्कि उसके फ़न की क़द्र-ओ-मंज़िलत का इम्तियाज़ी निशान है। मिसाल के तौर पर ये जुमले जो हक़ीक़त में तो अफ़लातून के सिम्पोज़ियम के मफ़रूज़े का हिस्सा हैं: “जब तक ख़ुदा ने उनके दो हिस्से न कर दिए, इंसान दो जिंसी था, और अब ये सारे निस्फ़ हिस्से दुनिया भर में एक-दूसरे को ढूँढते रहते हैं। मोहब्बत उस आधे की तमन्ना है जो हम खो चुके हैं।” यहाँ कुंडेरा ने हमें बताया कि दरअस्ल आधे की तमन्ना यानी वो औरत जिसकी तमन्ना की गई, उसको छोड़ कर (क्योंकि वो तो इंसान को कभी नहीं मिलती, वो सिर्फ़ उसके ख़्वाब का हिस्सा हो सकती है, और उसके साथ होने के लिए या तो इंसान ख़्वाब में जाता है या तसव्वुराती ख़ला में भटकता रहता है) मोहब्बत की तरफ़ सफ़र करना पड़ता है क्योंकि हर टॉमस को उसकी टेरेज़ा नरसल की टोकरी में उसके बिस्तर तक भेज दी जाती है। एक और बलीग़ जुमला देखिए: “मोहब्बतें सल्तनतों की मानिंद होती हैं; जिस नज़रिए पर वो क़ायम हों, अगर वो मुन्हदम हो तो वो भी मिस्मार हो जाती हैं।”
मोहब्बत के बारे में कुंडेरा हमें आगाह करता है कि टॉमस के टेरेज़ा के पहलू में मर जाने की ख़्वाहिश हो या उसके जिस्म की क़ुर्बत में ज़म हो जाने की आरज़ू, दरअस्ल ये बातें मुबालग़ा-आमेज़ और ना-क़ाबिल-ए-यक़ीन हैं। नॉवेल के पहले बाब में एक मंज़र है कि सोहबत के बाद टेरेज़ा टॉमस का हाथ थाम कर (उसकी ये कैफ़ियत मोहब्बत का इस्तिआरा है, जो आख़िर तक क़ायम रहती है) ही सो जाती है, टॉमस की साइकी पर इस ग़ैर-इरादी अमल का असर बड़े वालिहाना अंदाज़ में होता है। कुंडेरा इस मंज़र को मोहब्बत के हवाले से एक तल्मीही या तारीख़ी तस्लीस बना देता है जहाँ फ़िर्औन की बेटी ने एक तूफ़ानी दरिया में मूसा की टोकरी को उठा लिया था, पोलीबस ने ओडिपस की ज़िम्मेदारी ली थी, और टॉमस ने टेरेज़ा को एक नरसल की टोकरी में से उठा लिया था। और यहाँ वो मशहूर जुमला हमें पढ़ने को मिलता है कि “एक वाहिद इस्तिआरा भी मोहब्बत को जनम दे सकता है।”
एक और तरह की मोहब्बत के बारे में हम इस किताब में पढ़ते हैं और वो है इंसान से ग़ैर-ए-इंसान की मोहब्बत! यानी टेरेज़ा की कैरनीन से मोहब्बत जो अस्ल में एक कुतिया होती है और जिससे टेरेज़ा बहुत मोहब्बत करती है। ये एक बेलौस मोहब्बत की बेहतरीन मिसाल है। ये एक ऐसी मोहब्बत है जहाँ कोई उम्मीद या तवक़्क़ो नहीं पाई जाती है, बल्कि चाहने और चाहे जाने के अमल में अपने साथी को उसके असली रूप में क़ुबूल करने की ज़रूरत का इदराक अता करती है। इस ख़ूबसूरत रिश्ते में टेरेज़ा को महसूस होता है कि “शायद हम इसलिए मोहब्बत करने से क़ासिर हैं कि हम मोहब्बत किए जाने के लिए तरसते हैं” और उस पर एक जानवर के वसीले से ये राज़ खुलता है कि “इंसान ख़ुश नहीं रह सकता। ख़ुशी दोहराए जाने की तमन्ना है” और इन बातों को जानने के बाद टेरेज़ा की टॉमस के लिए मोहब्बत में इज़ाफ़ा हो जाता है।
जिंसियत का इस्तेमाल या इज़हार हिंदुस्तानी और आलमी अदब के कई अहम नाविलों में देखने को मिलता है। नोबोकोव का लोलिता, जॉयस का यूलीसिस और लॉरेंस का लेडी चैटर्लीज़ लवर इसकी बेहतरीन मिसालें हैं। लेकिन इंसानी शहवानियत या जिंसी मिलाप के मनाज़िर के हवाले से जो काम कुंडेरा ने लिया है, वो अपनी मिसाल आप है। नॉवेल में टॉमस, टेरेज़ा, सबीना और फ़्रांज़ की ज़िंदगियों के जिंसी पहलुओं को वुजूदी कश्मकश की बुनियादों पर बयान किया गया है।
टॉमस नॉवेल में एक प्लेब्वॉय की सूरत में दाख़िल होता है और तीन के उसूल की पाबंदी के साथ अपनी माशूक़ाओं और ख़्वातीन दोस्तों से तअल्लुक़ क़ायम करता है। टेरेज़ा की आमद से दस बरस पहले जब उसने अपनी बीवी को तलाक़ दी, उसके मां-बाप ने भी उसकी मज़म्मत करते हुए उससे रिश्ता ख़त्म कर लिया। ये हादिसात उसके अंदर औरत से ख़ौफ़ छोड़ गए। उसे उन सबकी ख़्वाहिश तो होती लेकिन ख़ौफ़ भी आता। दरअस्ल ये सिलसिला ख़ौफ़ और ख़्वाहिश के तवाज़ुन को बरक़रार रखने के लिए अमल में लाया गया था जो बाद में उसकी शिनाख़्त का हिस्सा बन गया और जिसके बारे में उसके दोस्तों, चाहने वालियों और माशूक़ाओं के सिवा कोई भी नहीं जानता था।
उसने इस ‘शहवानी दोस्ती’ को मोहब्बत से पाक रखने के लिए जज़्बात से ख़ाली, किसी के हुक़ूक़ तलफ़ किए बग़ैर और किसी की आज़ादी में दाख़िल हुए बग़ैर तअल्लुक़ बनाना शुरू कर दिए। वो उनसे सोहबत करता और सोहबत के बाद उसे तन्हाई की शदीद ख़्वाहिश होती। किसी के साथ सारी रात गुज़ारना, सुब्ह को उसी के पहलू में बेदार होना उसे बद-ज़ौक़ी और बेज़ार-कुन लगता! टेरेज़ा वो वाहिद पैमाना थी जिसने टॉमस को इस हक़ीक़त से आगाह किया कि मोहब्बत और जुफ़्ती दो अलग-अलग चीज़ें हैं। जुफ़्ती दरअस्ल सैंकड़ों औरतों से मिलाप की ख़्वाहिश थी और मोहब्बत वो ख़्वाहिश थी जो एक औरत तक महदूद थी। ये वो इशारा है जो हमें टॉमस की सूरत-ए-हाल बताता है कि वो वुजूद के हल्केपन से महज़ूज़ होना चाहता था, होता भी था, मोहब्बत उसके लिए भारी थी, जिससे वो हमेशा थक जाता था, लेकिन क़ाबिल-ए-दीद बात ये है कि कुंडेरा हमें मोहब्बत के हल्के और भारी होने के बारे में भी बताता है। टॉमस के वुजूदी बोहरान का एक एक पहलू ये था कि टेरेज़ा से ज़ियादा मोहब्बत करने के बाद भी वो दूसरी औरतों के लिए अपनी तलब को क़ाबू करने की ताक़त से महरूम था। एक मक़ाम पर टॉमस को अहसास होता है कि औरतों की तलब वो ज़रूरत या ख़्वाहिश थी जिसने उसे ग़ुलाम बना लिया था और इसलिए ही वो सारी ज़िंदगी निसाई सुकून के लिए तरसता रहा था। वो मोहब्बत ही थी जिसने टॉमस को ये अहसास दिलाया कि टेरेज़ा के साथ होने के बावुजूद सबीना या किसी दूसरी औरत से किसी भी क़िस्म का रिश्ता दरअस्ल ना-इंसाफ़ी है।
कुंडेरा औरत और मर्द के जिंसी तअल्लुक़ को “मुबाशरत, शहवत, जुफ़्ती” जैसे अल्फ़ाज़ के सहारे मारिज़-ए-बयान में लाता है। वो फ़्रांज़ की जिंसी और वुजूदी सूरत-ए-हाल के हवाले से हमें बताता है कि फ़्रांज़ जिंसी अमल करते हुए वुजूद की अमीक़ गहराइयों में मौजूद तारीकी की दबीज़ तहों में उतरता चला जाता है और सिर्फ़ तहलील ही नहीं होता बल्कि बाहर से भी कम होता जाता है। वुजूद की ये वही तारीकी या अंधेरा है जो हमें इदराक फ़राहम करता है कि “अगर तुम्हें ला-महदूद की तलाश है तो बस अपनी आँखें बंद कर लो।” मुक़ारबत के दौरान वो अपनी आँखें बंद कर लेता है जो तारीकी की तरफ़ उसके अज़ली रुजहान का इस्तिआरा है और जैसा कि कुंडेरा हमें बताता है कि इस्तिआरे ख़तरनाक होते हैं। यहीं सबीना की बसारत उसकी बंद आँखों से ना-इत्तिफ़ाक़ी ज़ाहिर करती है, वो बसारत जो दरअस्ल ज़िंदगी की एक शक्ल थी।
टॉमस जो अस्ल में एक बेहतरीन सर्जन रहा है, वो अपनी ज़िंदगी में दस बरसों पर मुश्तमिल अरसे को सिर्फ़ इंसानी ज़ेहन पर मर्कूज़ करता है और जानता है कि इंसानी ‘मैं’ से ज़ियादा ना-क़ाबिल-ए-फ़हम कुछ भी नहीं। “आदाद के इस्तेमाल से हम कह सकते हैं कि दस लाख में से सिर्फ़ एक हिस्सा फ़र्क़ है जबकि नौ लाख, निनानवे हज़ार नौ सौ निनानवे हिस्से मुश्तरक हैं।” यहाँ टॉमस के जिंसी ख़ब्त का भेद खुलता है कि टॉमस को औरतों का ख़ब्त नहीं था बल्कि वो तो ये जानना चाहता था कि वो चीज़ जो तसव्वुर से परे, ग़ैर-वाज़ेह या इज़हार से मावरा है, आख़िर है क्या? अब सवाल ये पैदा होता है कि फिर जिंसी अमल ही में क्यों तलाश करना है? तो इसका जवाब यूँ है कि ये फ़र्क़ इंसानी वुजूद के हर हिस्से में मौजूद तो होता है लेकिन जिंस के अलावा हर हिस्से में वाज़ेह होता है और जिंसियत ही में सबसे क़ीमती होता है। चूँकि ये नज़र नहीं आता, इसलिए उसे तलाश करना पड़ता है, वाक़िअतन फ़त्ह करना पड़ता है, और जिंसियत ही में औरत की ‘मैं’ छुपी हुई होती है।
टॉमस ने जिन औरतों से सोहबत की थी, उनकी तादाद ख़ासी बड़ी थी। एक औरत के बारे में वो बस यही सोचता रहा था कि कि अगर वो मुबाशरत करें तो वो कैसी होगी और वो किसी मंज़र का तसव्वुर ही नहीं कर सका। ये एक दराज़-क़द औरत थी और जिसने उसके हुक्म पर जवाबी हुक्म दिया था कि पहले लिबास तुम उतारो। फिर टॉमस ने उसके साथ जिंसी अमल में जो तजरिबा किया था उसमें अनाड़ीपन और जोश की मिक़दार ज़ियादा थी। हालांकि दूसरी बातें भी उसने दरयाफ़्त कीं।
एक दूसरी औरत ने उसे बताया कि उसे तलज़्ज़ुज़ नहीं बल्कि मसर्रत चाहिए, मसर्रत जो तशद्दुद की भी मुतक़ाज़ी थी। ये वो औरत थी जिसने टॉमस की शायराना याद के दरवाज़े पर दस्तक दी थी लेकिन दरवाज़ा बहुत साल पहले ही बंद हो चुका था क्योंकि टेरेज़ा उसमें अपने अलफ़ाज़ दाख़िल कर चुकी थी।
एक तीसरी औरत जिसकी ख़्वाहिश थी कि टॉमस अपने चेहरे और सर के मक़ाम से उससे मुबाशरत करे, और वो उसके चेहरे पर बैठ गई थी। टॉमस जिंसी अमल के दौरान अपनी आँखें खुली रखता और लज़्ज़त की हर तरंग पर मस्त होता। दरअस्ल आँखें खुली होने का मानी था वो मानूस रौशनी जो उसकी कशिश का मरकज़ था। जिसके तअक़्क़ुब में वो बे-तरह दीवानावार दौड़ लगाया करता था और जो उसकी दस्तरस से बाहर थी। ये वही रौशनी थी जिसे वो फ़त्ह नहीं कर सका था यानी वो ना-क़ाबिल-ए-तस्ख़ीर ‘मैं’ जो फ़र्क़ की सूरत में दस लाख में से कोई एक हिस्सा था।
नॉवेल में कुंडेरा ने ग़लत-फ़हमियों के बाब में भी बहुत कुछ लिखा है। टेरेज़ा शुरुआत ही से ग़लत-फ़हमियों का शिकार रहती है। वो सोचती है कि टॉमस से उसके तअल्लुक़ की बुनियाद ही एक ग़लत-फ़हमी पर थी। जब वो आई थी, उसकी
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